Monday, January 25, 2010

Suyee Dhaaga (सुई धागा)

एक तीखी पतली सी सुई से,  और
एक सादे सफ़ेद कात के धागे के रोल से
एक दिन दर्जी ने गौर से पूछा,

के तुम दोनों इतना जो साथ निभाते हो
चलो मेरे तो बहुत काम आते हो
पर तुम क्या इससे कुछ पाते हो?

सुई बोली के क्या बतायें
"इतने टाँके जो साथ लगाये
कितने ताने जो साथ बनाये
वो बेशक सब हम भूल जायें,

"पर मन कहता है याद रहेगा,
जब तुमने पहले पहल इस धागे को
मेरी आँख में पिरोया था, समोया था!
तब से एक मैं हूँ और एक ये धागा!

"फिर हर किस्म के, नर्म खुरदुरे
देखे सौ लिबास हमने साथ
अन्दर बाहर, तह तह को सिलते सिलते
छन गयी कुछ ख़ास हममें बात

"अब समझ है उमदा, परख है पक्की
एक दुसरे की ऐसी जैसे
दो साथी, दो हमसफ़र, यूँ कहें कि,
दो प्रेमी हों, बरसों पुराने!

"अब दिन भर की सिलाई चुभती नहीं
अगर रात भर मैं, इस धागे को
आँख बसाए, तेरे सुई-डिब्बे में
थोडा आराम करूं, सुस्ताऊँ, सो लूं!"

"अरे बस बस!", दर्जी ने ली लम्बी उबासी
"है खरी लड़की एकदम तू , पट पट बोलती जाती!
चल धागे से पूछता हूँ अब मैं ज़रा सी

"तू कहाँ फँस गया आ इस दूकान में
मुई सुई के वश में दिन दिन घटता, कम होता
क्यूँ नहीं जा बसा किसी पतंग बाज़ के?

फिर लाल रंग चढ़ता तुझपे,
और काँच वाँच भी! मांझा कहलाता...
और आसमान में उड़ता, चढ़ता, काटता!"

नीरा धागा बोला "का बताऊँ, मालिक
सादा हूँ, ये सब तो जानता नहीं
पर सच कहूं तो इस रिश्ते से पहले
ना सोचा कुछ और, ना चाहूंगा बाद भी!
... चल सुई!"

- On and for our second anniversary...