Monday, July 27, 2009

Ek Sitara

The single-most important 'nakshatra' that I've got... written a while ago for omnifuse. Retrofitting lyrics to an existing tune is a pain... ended up using words as fillers and changing to less 'real' words just to suit the beat / tone.

दो तबस्सुम हज़ार है, एक हंसी बेशुमार है

आलम-ए-शब थी, चांदनी फीकी
एक सितारे की, बीनाई देखी
आलम-ए-शब थी, चांदनी फीकी
इस सितारे से शायद प्यार है

रौशनी रहगुज़ार है, एक सितारे से प्यार है

अंतरा १)

माहताबों से बढ़के रौशन तू,
रिन हिजाबों से बढ़के दिलकश तू.

अर्श से हासिल, हष्र को काबिल,
अलबत्ता शामिल, रहनुमाई भी
अर्श से हासिल, हष्र को काबिल,
इस सितारे से शायद प्यार है

रौशनी रहगुज़ार है, एक सितारे से प्यार है|

अंतरा २)

कब से था हर फलक हर तरफ बंजर
जब न था वो दिखा सब था बेमंज़र

एक मर्तबा वो, लख्त-ए-जन्नत जो
मिले रहमत को, शुरू इबादत हो
मिला रहमत को, लख्त-ए-जन्नत जो
इस सितारे से शायद प्यार है

रौशनी रहगुज़ार है, एक सितारे से प्यार है|

Thursday, March 19, 2009

Madhushala!

I was frantically trying to get to the bottom of the daily mail stack, with Dream Theater blasting through the Sony headphones, that have been used mercilessly and stay plastered together somehow through generous use of cello-tape. I don't fancy Dream Theater for music... but they sure are complicated and fast paced enough to make me defocus from the song itself. It was Bosh that intro'ed me to them.

And then I saw Madhushala in the playlist... hadn't played it in more than a year. Hadn't heard vivid ras-daar hindi geet by Bachchan Sr., which I was in love with for so long. I once had it mostly memorized. (Is not easy, it's a 30 minute long song... and aah Manna De's calm soothing voice of). I used to play it on my cheap Transcend mp3 player and get lost in the tune.

I played it, and got lost again. It's 12 minutes to go for some freaking important meeting and instead of going through the notes, I am writing this!

मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला
किस पथ से जाऊं असमंजस में है वो भोलाभाला|
अलग अलग पथ बतलाते सब, पर मैं ये बतलाता हूँ
राह पकड़ तू एक चलाचल पा जायिएगा मधुशाला!!

सुन कल कल छल छल मधुघट से गिरती प्यालों में हाला
सुन रन झुन रन झुन चल वितरण करती मधुसाकी बाला
बस आ पहुंचे दूर नहीं कुछ चार कदम अब चलना है
चहक रहे सुन पीनेवाले, महक रही ले मधुशाला!

अधरों पर हो कोई भी रस , जीव्हा पर लगती हाला
भाजन हो कोई हाथों में , लगता रखा है प्याला
हर सूरत साकी की सूरत में परिवर्तित होती है
आँखों के आगे हो कुछ भी, आँखों में है मधुशाला !!

and on and on it goes holding me again in gentle trance... bin sharaab ki hai ye madhushala!

Wednesday, March 11, 2009

Aag Ka Dariya - Rest in peace

This one is set in a rock'ish tune... This one is about death and separation.


Aag ka ek dariya hai, doob ke jaana paar
Jism Jalte ek dekha hai, ek  hai jalana yaar
Zindagi mit gayee ek, haan
Ek bachi, adh mari, maangti maut bhi

Teri yaadein kain, saari baatein rahin
Ek zara si aankhein bhi nam

Chaar din aur saat sur aur arbon aasmaan
Do parinde thhe mohabbat me jiye jahaan
Do parwazon ki sau nason mein lakhon lahu rawaan
Ek hue aur sang ude phir rukna thha kahan

Ek dafaa pur zor badhawaa
Yun chalee, ek panchhi na raha
Wo jab tak ude, sur milaate rahe
Sa re ga, Sa re ga, Sa re pa ma ga re

Teri yaadein kain, saari baatein rahin
Ek zara si aankhein bhi nam

Din mahine saal beete, sukhi shayari
Ris raha har ghaav dil ka lekin aaj bhi
Haath mere ek kalam thhi ek thhi zindagi
Ban gaya lo geet antim, sansein aakhiri

Le lahu likh daali lafzon
Me Meri laachaargi...!

Teri yaadein kain, saari baatein rahin
Ek zara si aankhein bhi nam

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Cm                       Bb
आग का एक दरिया है, डूब के जाना
Cm                       Bb

जिस्म जलते एक देखा है, एक है जलाना
Cm                
ज़िन्दगी मिट गयी एक
एक बची, अध मरी, मांगती मौत भी|

तेरी यादें कईं, सारी बातें रहीं
एक ज़रा सी आँखें भी नम||

चार दिन और सात सुर और लाखों आसमान
दो परिंदे थे मोहब्बत में जिए जहां
दो परवाज़ों की सौ नसों में लाखों लहू रवाँ
एक हुए और संग उड़े फिर रुकना था कहाँ 

एक दफा, पुरज़ोर बदहवा
यूँ चली, एक पंछी ना रहा
वो जब तक उडे, सुर मिलाते रहे
सा रे ग, सा रे ग, सा रे प म ग रे!

तेरी यादें कईं, सारी बातें रहीं
एक ज़रा सी आँखें भी नम||


दिन महीने साल बीते, सूखी शायरी
रिस रहा हर घाव दिल का लेकिन आज भी!
हाथ मेरे एक कलम थी, एक थी ज़िन्दगी
बन गया एक गीत अंतिम, साँसें आखिरी !!
 
ले लहू लिख डाली लफ्जों में मेरी लाचारगी...
 
तेरी यादें कईं, सारी बातें रहीं
एक ज़रा शी आँखें भी नम||

Wednesday, February 11, 2009

उन्मुक्त , बंधनों के साथ!

चल खिवैया खे ले अपनी नाव ले पतवार भइया
दूर दीप है जाना
रुक मुसाफिर देख दुनिया, नील गगन औ' नीला दरिया
बिसरा भी दे ठिकाना

देख मुसाफिर...
ओर छोर खारा पानी पाताल गगन को चूमे
उस अंत में गोला लाल, रवि छुन छुन पानी में डूबे
मछरी भर भर कश्तियों का, मोड़ नोक फिर तट की ओर
गाँव घर लौट आना
नाव नाक की सीध में अपनी बढती जाए दूर क्षितिज के
झ्हरने से भीड़ जाना

सुन खिवैया...
सब सुंदर है जल अंबर पर नहीं हैं मेरे अपने

(काम चालु है ... :) )

iPod-dar!

Its true. Thanks to a generous sweet gesture by wife, the great, I am finally iPod-dar!