Wednesday, February 11, 2009

उन्मुक्त , बंधनों के साथ!

चल खिवैया खे ले अपनी नाव ले पतवार भइया
दूर दीप है जाना
रुक मुसाफिर देख दुनिया, नील गगन औ' नीला दरिया
बिसरा भी दे ठिकाना

देख मुसाफिर...
ओर छोर खारा पानी पाताल गगन को चूमे
उस अंत में गोला लाल, रवि छुन छुन पानी में डूबे
मछरी भर भर कश्तियों का, मोड़ नोक फिर तट की ओर
गाँव घर लौट आना
नाव नाक की सीध में अपनी बढती जाए दूर क्षितिज के
झ्हरने से भीड़ जाना

सुन खिवैया...
सब सुंदर है जल अंबर पर नहीं हैं मेरे अपने

(काम चालु है ... :) )

1 comment:

Unknown said...

Hi sumeet,
saw that you guys implemented radio on lan in your campus... did you play any songs from bollywood??
Are there any legal permissions required to implement the lan radio and did you take any??
please reply....

rajendra.boppana@gmail.com

thanks in advance..