कल रात सोते सोते बायीं करवट
जब बायीं आँख फड़फड़ायी थोड़ी
और फिर खुली, तो उसके बाएं कोने से
फिर एक सपना बूँद बन कर तकिये पे जा गिरा
और फिर एक लम्हे के बाद नींद लौटी
और उस सपने को ज़हन में
फिर खींच लाने को मींची आँखों ने
शिद्दत जद्दोजहत बहुत की
पर नींद के मन में कुछ और समाया
नींद ने एक और ख्वाब दिखाया
के ख्वाब जो गिरा था बूँद बन के
उसने अब तकिये को भीनी मिटटी की तरह
सींच सींच कर जोत जोत कर उपजाऊ बनाया
और एक हलकी सी, नन्ही लता उगी
उसी तकिये के दरमियान
और एक छोटा सा फूल
बैंगनी रंग का खिला हुआ ऊगा
जिसे देखते ही मन बिलकुल भर सा आया
बीते सपने से एक नया सपना सिंच उठा , जी उठा
No comments:
Post a Comment